दानवीर कर्ण की कहानी – Hindi story about organ donate

Danveer Karna story ** अंगदान पर आधारित कहानी

danveer karna story

सीखते रहने में ही जिंदगी का असली मजा है, अच्छा या बुरा वो पूरी तरह से आप पर ही निर्भर (depend) करता है। अगर हर रोज आप कुछ नया सीखने की कोशिश नहीं कर रहे है तो अवश्य ही आप कहीं न कहीं फसे हुए है और आप ही है जो इस कैद से खुद को आजाद कर सकते है। स्वयं पर विश्वास रखिए और अपनी समस्याओं को समाधान में बदलिए ।

नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है सन इन डीप अर्थात संदीप। दोस्तों आपका besthindilink.com में बहुत-बहुत स्वागत है।

तो चलिए शुरुआत इधर से  –

महाभारत काल से सम्बन्धित महादानवीर कर्ण का नाम शायद ही कोई न जानता हो।

कर्ण अपने अद्म्य साहस, महान युवा योद्धा, धनुर्धारिता और विशेष तौर पर अपनी दानवीरता के लिए विख्यात थे। इन्हें अंगराज कर्ण के नाम से भी जाना जाता है। क्यों कि दुर्योधन द्वारा इन्हें अंगदेश का राजा घोषित किया गया था।

यहाँ इनकी महादानवीरता की एक घटना का वर्णन किया जा रहा है। जो इस प्रकार है –

महाभारत युद्ध में कर्ण दुर्योधन का साथ दे रहे थे। कर्ण के जीवित रहने पर पाण्डवों के लिए कौरवों को हराना आसान नहीं था। क्यों कि कर्ण के पास विशेष प्रकार के कवच और कुंडल थे। यह कवच और कुंडल उनके शरीर से जुड़े हुए थे। यह एक प्रकार से उनके शरीर का ही भाग थे।

 

Point – कवच और कुंडल

महाभारत की कथा के अनुसार – कर्ण की माता कुन्ती के आहवान पर सूर्य देव प्रकट हुए। कुन्ती ने सूर्य देव से एक असाधारण प्रतिभा वाले पुत्र की कामना की। वरदान स्वरुप सूर्य ने कुन्ती को अपने समान एक तेजस्वी बालक प्रदान किया। वह बालक कर्ण था। कर्ण सूर्य देव को अपने पिता समान मानते थे। यह कोई सामान्य बालक नहीं था। जन्म के साथ ही कर्ण के पास यह कवच और कुंडल थे। जो कि कर्ण के शरीर का ही भाग थे।

 

  Point – कवच और कुंडल की विशेषताये

कवच कर्ण को रक्षण प्रदान करता था। इस कवच के रहते हुए कर्ण पर किसी भी शस्त्र का कोई प्रभाव नही हो सकता था।

कुंडल कर्ण को ऊर्जा प्रदान करता था। कहा जाता है कि इन कुंडल में अमृत का अंश था। जो कि कर्ण को युवा और ऊर्जावान बनाये रखता था।  

इन कवच और कुंडल के रहते हुए कर्ण को परास्त करना नामुनकिन था। साथ ही कर्ण पांडु पुत्र अर्जुन का वध करना चाहते थे।

इस कारण इंद्र देव अपने पुत्र अर्जुन की रक्षा के लिए एक ब्राह्मण का रुप धारण करते है। वे जानते थे कि कर्ण किसी को भी खाली हाथ वापिस नहीं लौटाता है।

इंद्र ब्राह्मण वेश में कर्ण के पास पहुँचते है। वह कहते है-

मैं तुम्हारे पास दान की इच्छा से आया हूँ। क्या तुम मुझे दान देने की इच्छा रखते है?

कर्ण –

हे ब्राह्मण! आप निश्चिन्त होकर दान मांगिये। मैं आपको अवश्य दान दूँगा। आप क्या चाहते है?

ब्राह्मण –

मुझे तुम्हारे कवच और कुंडल चाहिए।

कर्ण समझ जाते है कि ब्राह्मण के वेश में देवराज इंद्र है। जो कि अर्जुन के रक्षण के लिए उनसे उनका कवच और कुंडल माँग रहे है।

कर्ण बिना किसी संकोच के इंद्र को प्रमाण करते है और कहते है कि-

मैं जान गया हूँ कि आप देवराज इंद्र है। आप मेरे कवच और कुंडल ही क्यों माँग रहे है, मैं यह भी भली भाँति जानता हूँ।

लेकिन आप चिन्तित न हो। यदि कोई भी मेरे द्वार पर दान की आशा से आता है तो मैं उसे रिक्त हाथ वापिस नहीं भेजता हूँ।

कर्ण सब कुछ जानते हुए भी अपने शरीर के अद्वितीय (the unique) भाग को देने के लिए तैयार हो जाते है। वह अपने कटार का प्रयोग करते हुए अपने कवच और कुंडल को शरीर से अलग कर देते है। उनका शरीर लहुलुहान हो जाता है।

यह देख इंद्र स्वयं को लज्जित महसूस करते है। वह कहते है –

मैं स्वयं से नजरें नहीं मिला पा रहा हूँ। सब जानते हुए भी तुमने अपने कवच और कुंडल का दान दे दिया। तुम्हारी प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। तुम्हारा साहस उच्चस्तरीय है।

कर्ण की अविश्वसनीय दानवीरता से प्रभावित होकर देवराज इंद्र कर्ण को एक अमोघ शकित प्रदान करते है।

इंद्र जाते हुए कहते है कि-

हे महादानी कर्ण ! तुम जैसा दानवीर शायद ही कोई होगा। इतिहास तुम्हें कभी नहीं भूल  पायेगा। जब तक यह संसार रहेगा तुम महादानवीर कर्ण के नाम से जाने जाओगे।

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दानवीर कर्ण  पर आधारित यह प्रेरणादायक कहानी आपको कैसी लगी। आप अपने विचार comments के माध्यम से हमारे साथ शेयर कर सकते है।

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तब तक के लिए –

Feel every moment,

 live every moment,

   Win every moment……

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