Short Inspirational story in hindi whenever you feel angry
एक प्रेरणादायक कहानी
आज की कहानी बताना चाहती है – जब भी गुस्सा आये, इस कहानी को एक बार जरुर पढ़ लें।
सीखते रहने में ही जिंदगी का असली मजा है, अच्छा या बुरा वो पूरी तरह से आप पर ही निर्भर (depend) करता है। अगर हर रोज आप कुछ नया सीखने की कोशिश नहीं कर रहे है तो अवश्य ही आप कहीं न कहीं फसे हुए है और आप ही है जो इस कैद से खुद को आजाद कर सकते है। स्वयं पर विश्वास रखिए और अपनी समस्याओं को समाधान में बदलिए ।
नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है सन इन डीप अर्थात संदीप। दोस्तों आपका besthindilink.com में बहुत-बहुत स्वागत है।
तो चलिए शुरुआत इधर से —–
ये कहानी है दो घनिष्ठ दोस्तों की – समर और नितिन। नितिन की एक बहुत बड़ी परेशानी थी, वो था उसका गुस्सा। वास्तव में यह नितिन से भी कहीं अधिक उसके माता-पिता के लिए चिन्ता का विषय था। जिसे देख उसके माता-पिता बहुत ही दु:खी रहते थे।
नितिन छोटी-छोटी बातों पर किसी पर भी गुस्सा कर देता था। उसके इस व्यवहार के कारण नितिन के पिता जी ने उसके दोस्त समर को घर पर बुलाया और समर को अपनी पूरी व्यथा सुनायी। और नितिन के पिता ने समर से कहा कि –
समर, मैं यह अच्छे से जानता हूँ कि नितिन तुम्हारी बात पर बहुत ही विश्वास करता है और वह तुम्हारी बात टालेगा भी नहीं। क्या तुम नितिन को समझाने में मेरी मदद करोगे।
समर नितिन के माता-पिता की परेशानी को अच्छी प्रकार से समझ चुका था। समर ने कहा – अंकल जी आप चिंता न करें, आप कुछ दिन के लिए नितिन को मेरे घर पर रहने दें। मैं आपकी परेशानी का समाधान अवश्य ही कर दूँगा।
नितिन के पिता समर के परिवार से भी परिचित थे और समर पर विश्वास भी करते थे, तो उन्होंने इसके लिए हाँ कर दी।
समर और नितिन, घर पहुँचते है और एक दिन के लिए खूब आनन्द लेते है। इसी बीच समर, नितिन के गुस्से के लिए एक उपाय ढूँढ लेता है। समर, नितिन से कहता है कि –
नितिन, आज से हम एक गेम खेलते है और उसे कुछ दिन के लिए continue करेंगे।
नितिन कहता है –
कौन सी गेम…..
समर नितिन को बताता है कि –
जब भी हम दोनों में से किसी को भी गुस्सा आयेगा तो हम अपनी-अपनी नोट-बुक पर पेंसिल से एक लाइन ड्रा कर देंगे। हर एक गुस्से के लिए एक लाइन। हमें जितना ज्यादा गुस्सा आयेगा, हम उतनी ही गहरी लाइन खींचकर, अपने गुस्से को उस पेज पर निकाल देंगे। जिस दिन हमें एक बार भी गुस्सा नहीं आयेगा, उस दिन गेम समाप्त हो जायेगा। गेम समझ में आगया – समर ने कहा।
इस पर नितिन बोला –
ये क्या फालतू की गेम है, मुझे ऐसा कोई भी गेम नहीं खेलना है।
समर ने कहा- गेम पूरी होने मैं तुम्हें पार्टी दूँगा। और समर के बार-बार कहने पर वह किसी तरह मान गया।
अब गेम का पहला दिन –
समर को सामान्य दिनों की तरह बहुत ही तेज गुस्सा आया। गेम के अनुसार उसने अपनी नोट-बुक ओपन की और उस पर पेंसिल से एक बहुत ही डार्क लाइन खींच दी। उस लाइन को देख साफ पता चल रहा था कि नितिन के गुस्से का स्तर क्या है। क्यों की उसके नोट-बुक के कुछ अन्य पेज भी इस चपेट में आ चुके थे। उसकी पेंसिल अन्य कई पेजों को चीरते हुए काफी गहराई तक जा चुकी थी। इसी तरह नितिन पूरे दिन में जितनी बार भी गुस्सा करता, उसके लिए एक लाइन अपनी नोट-बुक में ड्रा कर देता।
इसी तरह इस प्रकिया को नितिन ने दूसरे दिन भी दोहराया। अब तीसरे दिन नितिन कुछ बोर होने लग गया था। नितिन ने सोचा अगर मैं गुस्सा थोड़ा कम करूँ तो मुझे कम लाइन ड्रा करनी पड़ेंगी और अंत में मुझे पार्टी भी मिल जायेगी। अब धीरे-धीरे नितिन ने थोड़ा-थोड़ा गुस्सा कम करना शुरु किया। इस प्रकार नितिन की नोट-बुक में लाइन की संख्या भी कम होने लग गयी। पाँचवें दिन नितिन ने केवल एक ही लाइन ड्रा की। और छठवें दिन तो उसने बिल्कुल भी गुस्सा नहीं किया।
अब दिन के अंत में नितिन आया और समर से कहा कि देख भाई आज मैंने एक बार भी गुस्सा नहीं किया और न ही आज मैंने नोट-बुक पर कोई लाइन खींची है। अब गेम समाप्त होता है और अब शर्तानुसार तुझे पार्टी देनी पड़ेगी।
समर ने कहा-
भाई, अभी गेम पूरा नहीं हुआ है। अब जितनी बार भी तुझे गुस्सा आयेगा और तू उसे कंट्रोल कर लेगा तो तुझे उतनी ही बार उन पहले खींची हुई लाइनों को रबर से मिटाना है। तब मैं तेरे को पक्का पार्टी दूँगा। नितिन समर की बात मान जाता है। और गेम को आगे बढ़ाता है।
अब नितिन जितनी बार भी अपने गुस्से पर नियंत्रण रखता, उतनी ही बार एक लाइन को मिटा देता। वो लगातार ऐसा करता रहा। लेकिन लाइनों की संख्या इतनी अधिक थी कि वह यह काम भी करते-करते बहुत ही बोर हो गया और अंत में कहा कि मैं इससे ज्यादा लाइन नहीं मिटा सकता हूँ, अब यह मेरे बस की बात नहीं है।
समर मुस्कराया और कहा कि –
तूने गेम को पूरी ईमानदारी के साथ खेला, इसके लिए मैं तुझे पार्टी तो जरूर दूँगा लेकिन उससे पहले मैं तुझसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ। समर ने कहा कि –
नितिन ये बता कि तुझे उस नोट बुक मैं क्या दिखाई दे रहा है?
नितिन ने कहा –
कुछ पेज पर लाइनें है, जिन्हें मैं मिटा नहीं पाया और आगे के कुछ पेज वो है, जिन पर मैं लाइनें मिटा चुका हूँ।
समर ने कहा –
जरा ध्यान से देखो, शायद तुम्हें वहाँ उन खाली पेजों पर कुछ और भी दिखाई दे।
नितिन ने कहा –
अरे हाँ, वहाँ जहाँ से मैंने लाइनें मिटाई थी वहाँ पर उन लाइनों के निशान है। कुछ निशान गहरे है तो कुछ हल्के। लेकिन मैं उन लाइनों को मिटा चुका हूँ। मुझे पार्टी जरुर चाहिए इसके लिए मैं बहाना नहीं चाहता।
समर फिर से मुस्कराया और थोड़ा सीरियस होते हुए बोला कि-
नितिन ये जो पेंसिल है, वो तुम हो और ये पेज तुम्हारे माता-पिता है। इन पेजों पर खींची हुई लाइनें तुम्हारा गुस्सा है, जिसे तुम अच्छे से जानते ही हो। जब भी तुम अपने माता-पिता पर गुस्सा करते हो तो इन लाइनों की तरह ही तुम उन्हें दु:ख देते हो और उसके बाद तुम उनसे क्षमा भी मागते हो तब भी उनके निशान वहाँ पर रह जाते है। जैसा कि तुमने देखा कि लाइनों के मिट जाने पर भी उनके निशान वहीं पर है। तुमने जहाँ अधिक गुस्सा किया था उसके निशान उतने ही गहरे है। तुम्हारे द्वारा बोले गये अपशब्द उन्हें समय-समय पर घाव देते रहते है, जिन्हें वो चाहकर भी भूल नहीं पाते है। और जब तुम्हारा गुस्सा एक सीमा से अधिक हो जायेगा तो तुम उसे हेन्ड़िल भी नहीं कर पाओगे। जैसा कि तुमने देखा कि तुम चाहकर भी कुछ लाइनों को मिटा ही नहीं पाये।
नितिन, समर की बात अच्छे से समझ चुका था। अब नितिन जल्द से अपने घर पहुँचा। उसने अपने गलत व्यवहार के लिए अपने माता-पिता से क्षमा माँगी। नितिन ने कहा कि वह अब कभी भी गुस्सा नहीं करेगा और किसी को भी कुछ भी बुरा-भला कहने से पहले अपने शब्दों का परीक्षण अवश्य करेगा।
कहानी की सीख –
कहनी का सार बहुत ही स्पष्ट है। हमारे द्वारा किया गया गुस्सा सबसे पहले हमारा स्वयं का ही शत्रु होता है। हम जाने अनजाने माता-पिता या अन्य लोगों पर किसी और का गुस्सा निकाल देते है। हमें लगता है कि यह एक बेहतर तरीका है। वास्तव में हम जाने-अनजाने अपने ही लोगों को दु:ख दे देते है, जो कि हमारी सबसे अधिक केयर करते है। हमारे द्वारा बोले गये शब्द एक बार निकलने के बाद वापिस नहीं आते है। इसलिए कुछ भी बोलने से पहले अपने शब्दों का चयन ठीक प्रकार से कर लें। हम गुस्से में कुछ भी बोल देते है और अपने रिश्ते खराब कर लेते है, जिनके निशान बहुत ही गहरे रह जाते है। इन सब का एक ही कारण है- गुस्से पर हमारा नियंत्रण न होना।
यहाँ इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि यदि कहीं पर कुछ गलत हो रहा हो तो हम मुस्कराते रहें और स्वयं से कहें कि गुस्सा नहीं करना है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हमें अपने दिमाग को हमेशा खुला और लचीला रखना है और परिस्थिति के अनुसार सही निर्णय लेना है। जहाँ जरुरत है गुस्से का प्रयोग भी करना है, लेकिन अपने पूरे नियंत्रण के साथ।
माता-पिता का सम्मान करें, देश का सम्मान करें।
पूछ-ताछ वैसे आपके विचार में नितिन फिर से अपने माता-पिता पर गुस्सा करेगा?? क्या समर ने भी अपनी नोट-बुक पर गुस्सा निकाला होगा? |
——–
क्रोध वह तेजाब है जो कि जिस पर भी डाला गया है, की अपेक्षा उस पात्र को अधिक हानि पहुँचता है जिसमें उसे रखा गया होता है। – मार्क ट्वेन |
क्या आज के दिन में आपने भी सीखा है कुछ भी नया?
क्या डेवलप (develop) कर रहे है कोइ नयी स्किलस (skills)??
यदि जबाब हाँ है तो आप सही दिशा में है और जबान नहीं है तो आज से ही शुरुआत कर दीजिए।
क्या आप भी जाने-अनजाने में अपने माता-पिता पर गुस्से रुपी गहरे निशान तो नहीं छोड़ रहे है??
Short Inspirational story in hindi whenever you feel angry पर आधारित यह प्रेरणादायक कहानी आपको कैसी लगी। आप अपने विचार comment के माध्यम से हमारे साथ शेयर कर सकते है।
हिन्दी का सम्मान करें, हिन्दी बोलने में गर्व महसूस करें।
तब तक के लिए –
Feel every moment,
live every moment,
Win every moment…
Kyu ki ye pal phir nahi milne wala……
– Sun in Deep
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